Friday, 27 March 2015

बालकों की स्वाभाविक रूचि एवं योग्यता .........

जय माता दी । 

गुरुदेव जी ० डी ० वशिष्ट के आशीर्वाद से,,,,,,,,,,,,,,, 
मित्रो आज मैं एक ऐसे विषय पर चर्चा करने जा रहा हूँ जो अक्सर माता पिता अपने बालकों की स्वाभाविक रूचि एवं योग्यता को 'बेसिक' व 'नेचुरल स्पार्क' को, तथा ज्योतिषीय आधार पर किसी विषय को समझने की उनकी स्वाभाविक संभावनाओं को या तो किसी विचार में लाते ही नही या नजरअंदाज कर देते है। अपना नजरिया और अपनी अतृप्त इच्छाएं वे बालकों पर थोप देते है तथा महत्वाकांक्षा एवं प्रतिस्पर्धा के चलते वे बालकों से उनकी योग्यताएं, सामर्थ्य सीमाओं से भी अधिक प्रगति करने की अपेक्षा रखने लगते है-परिणामतः बालको का बचपन तो बर्बाद हो ही जाता है। वो मानसिक और मनोवैज्ञानिक दबाब में आकर बहुत से रोग विकारों से ग्रस्त हो जाता है। उसकी प्रतिभा कुचली जाती है वह अपने पसंदीदा विषय का महारथी बनने की वजाए नापसंद और बलात थोप दिए गए विषय में 'कामचलाऊ' स्तर प्राप्त करके रह जाता है ।बाद में भी सारा जीवन वह कर्तव्यों/ड्यूटीस को उदरपालन की मज़बूरी की भांति बस ढोता है। मन से, जोश व उत्साह से ,पूरी निष्ठा व मनोयोग से सारी की सारी योग्यता का प्रदर्शन करते हुए कुछ भी 'बेहतर या बेहतरीन ' नही कर पता। दसवीं कक्षा के बाद विशेष रूप से विषय चुनने की आवश्यकता रहती है। आम धारणा है कि अव्वल रहने वाले छात्र साइंस साइड में जाते है, और तीसरे दर्जे वाले आर्ट्स साइड में जाते है। अक्सर माता पिता बालकों को साइंस लेने को उकसाते है। रह गए तो कॉमर्स ही ले लो। मगर आर्ट्स साइड तो मज़बूरी में ही चुनी जाती है । 
यह बालकों तथा उनके माता - पिता के लाभार्थ-साइंस/कॉमर्स/आर्ट्स साइड के चुनाव के उपयोगी, प्रमुख ज्योतिषीय सूत्र तथा आधार संक्षेप में दे रहा हूँ-क्यूंकि आजीविका या रोजगार की नींव यहीं से पड़नी शुरू होती है। 
जैसे की मैंने अपने पहले लेखों में लिखा था की अगर शनि नीच हो तो तकनीकी विषयों को समझने की छमता कम होती है । जातक ऐसे विषय पढ़ भी ले तो आगे उस दिशा में सफलता प्राप्त कर ही नही सकता। इसी प्रकार राहुयदि निर्बल हो तो इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग आदि में जातक सफल नही हो पाता। 
राहु-शनि उच्च के हो तो राजनीति में भी सफलता नही मिलती। 
बुध अगर बहुत अधिक अशुभ स्थिति में तो, गणित, सांख्यिकी, एकाउंट्स, इकोनॉमिक्स आदि में जातक सफल नही हो पाता । 
सूर्य अगर उच्च हो तो नागरिक शास्त्र, सामाजिक ज्ञान, हुमेनिटिस, आर्ट्स, पुब्लिक रिलेशन आदि से जुड़े विषयो में सफलता होती है। 
चन्द्र बलवान हो तो सयकोलॉजी, कृषि, टूरिज़्म, शिपिंग हाइड्रोलिक्स, कैश आदि से जुड़े हुए विषय पड़ने चाहिए। 
मंगल अगर उच्च हो तो सर्जरी, मेडिकल, आर्मी /पुलिस, आर्डिनेंस, केमिकल्स तथा फायरवर्क्स से जुड़े विषयो में सफलता मिलती है। इसी प्रकार ग्रहों के मुश्तरका कुंडली के एक घर में होने से, द्रिष्टि या युक्ती के प्रभाव से, दो या दो से अधिक ग्रहो के मिलने से या ग्रहो की कुंडली में घरों पर दृष्टीयों से भी कई प्रकार के विषय और व्यवसाय देखे जाते है। 
कुंडली में जितने अधिक से अधिक घर या ग्रह शुभ, अच्छी, बलि, उच्च स्थिति में होंगे जातक उतना अधिक से अधिक जीवन में ऊँची से ऊँची कामयाबियों को प्राप्त करता है और एक सफल जीवन व्यतीत करता है चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो। हमारे आसपास समाज में जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, उनमें से उनकी कुछ कुंडलियों के अध्ययन से यह देखने में आया है की उनकी कुंडलियों में एक से अधिक ग्रह उच्च स्थिति में थे। यहाँ तक की यह भी पाया गया है की अगर कुंडली में कोई दो या दो से अधिक शत्रु ग्रह आपस में शत्रुता से जातक की कुंडली में बैठे हों, और जीवन को असफल बनाते हों और किसी भी वजह से जाने या अनजाने, उपायों द्वारा उन ग्रहो की शत्रुता या नीचता को कम या खत्म कर दिया जाये तो जातक एक कामयाभ जिंदगी जीता है।ऐसा ही एक उदाहण यहाँ पर बताना चाहता हूँ । आम तौरपर, ज्यादातर, अगर कुंडली में मंगल दसवें भाव में शुभ और चन्द्र दूसरे भाव में शुभ और उच्च स्थति में बैठा हो तो दसवें भाव के मंगल के लिए कहा जाता है की विष्णु जी स्वयं घर पधारे। लेकिन देखने आता है की विष्णु जी को छोड़ो उनका दूत भी नही आता और जातक को खाने के लिए भी मोहताज होना पड़ता है। इसका कारण है कि जबतक मंगल का समय रहता है तब तक तो जातक को सब कुछ मिलता है लेकिन जैसे ही चन्द्र का समय आता है, वो सब कुछ जो जातक को मंगल के समय में मिला होता है वह भाप हो जाता है और जातक सोचता ही रह जाता है कि उसके साथ ऐसा क्या हो गया है। ऐसी बहुत सारी अनगिनत उदाहरण है जिनका यहाँ वर्णन कर पाना संभव नही है। बहुत सी कुंडलियों में यह भी देखने में आता है यदि कोई ग्रह शुभ या उच्च स्थिति में होता है लेकिन जातक उन ग्रहो के कारक विषयों और व्यवसायों में सफल नही हो पाता है। इसका मुख्य कारण कुंडली का सही और गहनता से विश्लेषण न करना होता है। 
कुंडली में ग्रहो एवं योगों की अशुभता एवं निर्बलता को अथवा ग्रहो की दशा और समय इत्यादि की प्रतिकूलता हो या अन्य कारणों से व्यवसाय/लाभ/आजीविका बाधित या दुष्प्रभावित हो रही हों, सामर्थ्य एवं योग्यता के अनुसार प्राप्ति ना हो रही हो अथवा प्रतिकूल एवं अशुभ प्रभाव जीवन में महसूस किये जा रहे हो तो ऐसी स्थितियों में उपाय प्रभावशाली और लाभकारी सिद्ध होते है। क्योंकि की बिना कारण के कार्य नही होता है और बिना कर्म के फल नही होता तथा कोई भी कर्म निष्फल भी नहीं होता। अतः किसी भी कार्य के लिए पहले उसका कारण बनाना पड़ता है। भाग्य प्रबल हो तो परिस्थितयां स्वय कारण बना देती है। किंतु भाग्य की निर्बलता या प्रतिकूलता हो तो 'कारण ' स्वय बनाना पड़ता है। इसे ही उपाय कहा जाता है। कोई फल बिना कर्म के प्राप्त नही होता-अतः उपाय को विधिवत एवं कुशलतापूर्वक किया जाये तो अवश्य ही सुपरिणाम प्राप्त होते है, क्योंकि उपाय स्वयं में कर्म होते है, और कर्म कभी निष्फल नही होता। यही उपाय का मह्त्व/सार्थकता/उपयोगिता व् औचित्य है। 
भाग्य कर्म के अधीन है। बुद्धिपूर्वक किये जाने वाले विशिष्ट कर्म अंततः भाग्य को बदल देते है। ऐसे ही कर्म तप कहे जाते है। जैसा की रामायण में कहा गया है 'सुत तप से दुर्लभ कछु नाही', 
जो ग्रह हमें लाभप्रद है किन्तु निर्बल है, उपाय द्वारा उसका बल बढ़ाकर हम अपना लाभ बड़ाते है। जो ग्रह हानिप्रद स्थिति में है किन्तु बलवान है, उपाय द्वारा उसका बल घटाकर हम अपनी हानि को कम कर लेते है। इसी प्रकार जो समय या परिस्थिति हमारे प्रतिकूल है -उसमें हम अपने लक्ष्य के लिए संघर्ष न कर 'धैर्यपूर्वक' अपनी योग्यता को बढ़ाते है और अनुकूल समय/परिस्थतियों में लक्ष्य प्राप्ति के प्रयासों को क्रियान्वित करते है तो हम कम परिश्र्म से अधिक की प्राप्ति करते हैं और हम असफल हतोत्साहित होने से बच जाते है। 
जातक विश्वास एवं अस्थापूर्वक उपाय कर सकें, इसके लिए आवश्यक है की जातक उपायों को प्रयोग में लाने से पूर्व उनका औचित्य, प्रणाली, विज्ञानं, शक्ति और सीमाओं के विषय में जानें। जानने से ही यकीन होता है और यकीन से ही आस्था व् सफलता होती है। जैसा की तुलसीदास जी ने कहा है कि "जाने बिन नही होए प्रतीति(आस्था), बिनु प्रतीति(आस्था) हो नही प्रीति" । 
मित्रो हमारे आसपास समाज में बहुत से उपाय, विधियां, तंत्र, मन्त्र, जप, इत्यादि अनेकों यंत्र उपलब्ध है। यह सब व्यर्थ नही है लेकिन इनका सही समय और सही ढंग से इस्तेमाल न होना कई बार हानिकारक हो जाता है। 
मित्रो जल्द से जल्द अपनी कुंडली निकालें और देखें अगर आप की कुंडली में ऐसे योग हों तो हमारे गुडगाँव कार्यालय में ज्योतिषाचार्य से संपर्क करें और उपायों द्वारा बुरे योगों के दुशप्रभाव को कम करने का प्रयास करें और अपने जीवन को अधिक से अधिक खुशहाल बनायें। 
अगर आप गुडगाँव से दूर हैं तब भी आप हमारे कार्यालय में ज्योतिषाचार्य से फ़ोन कॉल के माध्यम से अपनी कुंडली पर फलादेश और उपाय ले सकते हैं। साथ ही हमारे कार्यालय में ज्योतिषाचार्य आपकी कुंडली से सम्बंधित जानकारी जैसे फलादेश और उपाय कोरियर से आपके घर तक भेज सकतें है। 
जो सज्जनगन अपनी या अपने परिवार की जन्म कुंडली हमारे कार्यालय में ज्योतिषाचार्य को दिखा कर फलादेश के साथ बुरे ग्रहों की जानकारी लेना चाहते हो वह ईमेल द्वारा मात्र 11000.00 रुपया में पी डी ऍफ़ फाइल द्वारा प्राप्त कर सकते है। 
आचार्य हेमंत अग्रवाल 
ऍफ़ ऍफ़ 54, व्यापार केंद्र, सी ब्लॉक, सुशांत लोक, गुडगाँव - 122009
फ़ोन : 01242572165, मोबाइल : 8860960309 
फेस बुक पेज पर आचार्य हेमंत अग्रवाल
ईमेल : pb02a033@gmail.com 
सावधानी: कोई भी उपाय करने से पहले हमारे गुडगाँव कार्यालय में ज्योतिषाचार्य से सलाह अवश्य लें। 
माता रानी सब को खुशीआं दे।

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